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बक्सर का प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा मेला — स्वाद, संस्कृति और श्रद्धा का संगम

त्रेता युग से चली आ रही परंपरा, आज भी बक्सर की मिट्टी में जीवित है…
बिहार की भूमि अपने पारंपरिक स्वाद और सांस्कृतिक विरासत के लिए जानी जाती है।
इन्हीं में से एक अद्भुत परंपरा है — बक्सर का प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा मेला जो न केवल स्वाद का पर्व है, बल्कि त्रेता युग से चली आ रही आस्था की कड़ी भी है। यह मेला हर वर्ष हजारों श्रद्धालुओं और स्वादप्रेमियों को आकर्षित करता है, जहाँ भोजन, भक्ति और लोक संस्कृति का संगम देखने को मिलता है।

भगवान श्रीराम से जुड़ी पावन परंपरा पंचकोशी मेला:

पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में पंचकोशी यात्रा की शुरुआत बक्सर की पावन भूमि से की थी।
यह यात्रा पाँच पवित्र स्थलों से होकर गुजरती है। पंचकोशी यात्रा का अंतिम पड़ाव बक्सर नगरी में होता है, जहाँ भक्तजन यात्रा पूर्ण कर लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
किंवदंती है कि भगवान श्रीराम ने भी इसी स्थल पर लिट्टी जैसे देशी भोजन का स्वाद लिया था, और तभी से यह परंपरा चलन में आई कि पंचकोशी यात्रा का समापन लिट्टी-चोखा खाकर किया जाए।
यह परंपरा आज भी हजारों श्रद्धालुओं द्वारा उसी भाव से निभाई जाती है — जहाँ लिट्टी-चोखा सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि भक्ति और लोकगौरव का प्रतीक बन चुका है।
लिट्टी-चोखा : बिहार की आत्मा का स्वाद
लिट्टी-चोखा बिहार की पहचान है — एक ऐसा व्यंजन जो मिट्टी की महक और सादगी का स्वाद देता हैl
लिट्टी : गेहूं के आटे में सत्तू, सरसों का तेल, अदरक, लहसुन और मसालों की भराई।
चोखा : भुने आलू, बैंगन और टमाटर को सरसों तेल और प्याज के तड़के के साथ तैयार किया जाता है।
जब ये दोनों साथ परोसे जाते हैं, तो हर निवाला गांव की गंध, अपनापन और परंपरा का स्वाद समेटे होता है।
बक्सर का लिट्टी-चोखा मेला भक्ति और आनंद का उत्सव है, यह मेला केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि लोकजीवन का उत्सव है — जहाँ भक्तजन पंचकोशी यात्रा पूर्ण करने के बाद देसी चूल्हों पर सिकी लिट्टी का प्रसाद पाते हैं।
बक्सर का यह लिट्टी-चोखा मेला
त्रेता युग से चली आ रही एक अनमोल परंपरा का आधुनिक स्वरूप है। भगवान श्रीराम द्वारा आरंभ की गई पंचकोशी यात्रा आज भी उतनी ही श्रद्धा से निभाई जाती है |

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