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बिहार चुनाव: 'जीरो' पर सिप्रशांतमटी जन सुराज पार्टी, क्या किशोर राजनीति छोड़ेंगे?

बिहार चुनाव: 'जीरो' पर सिप्रशांतमटी जन सुराज पार्टी, क्या किशोर राजनीति छोड़ेंगे?
​पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (पीके) की राजनीतिक पारी की शुरुआत को करारा झटका दिया है। उनकी नवगठित पार्टी, जन सुराज, ने 239 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन शुरुआती रुझानों और अंतिम परिणामों में पार्टी एक भी सीट जीतने में विफल रही। यह प्रदर्शन प्रशांत किशोर के उन बड़े दावों के विपरीत है, जिन्होंने बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में 'तीसरे विकल्प' के रूप में एक बड़ी धूम मचाई थी।
​वादे और परिणाम
​प्रशांत किशोर ने अपनी जन सुराज यात्रा के दौरान बिहार के प्रमुख मुद्दों—बेरोजगारी, पलायन, और शिक्षा व स्वास्थ्य की बदहाली—को जोर-शोर से उठाया था। हालांकि, चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि जन सुराज का 'मुद्दा-आधारित' प्रचार, बिहार की पारंपरिक जाति-आधारित और बड़े गठबंधन की राजनीति के सामने टिक नहीं पाया। एनडीए ने इस चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, जबकि महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा है।
​संन्यास का सवाल: जब दांव पर थी भविष्यवाणी
​सबसे बड़ा सवाल प्रशांत किशोर के राजनीतिक भविष्य पर मंडरा रहा है, क्योंकि उन्होंने चुनाव से पहले एक बड़ा दावा किया था। पीके ने सार्वजनिक रूप से यह भविष्यवाणी की थी कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू 25 से अधिक सीटें नहीं जीतेगी। उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि अगर उनकी यह भविष्यवाणी गलत साबित हुई, और जदयू 25 से अधिक सीटें जीतती है, तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगे।
​चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, जदयू ने 85 सीटों पर जीत दर्ज की है, जो पीके की भविष्यवाणी से कहीं अधिक है। सोशल मीडिया पर अब यह बयान तेज़ी से वायरल हो रहा है और लोग उन्हें राजनीति छोड़ने का अपना वादा याद दिला रहे हैं।
​पार्टी का स्टैंड
​जन सुराज पार्टी के प्रवक्ता पवन के वर्मा ने चुनावी परिणामों पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि पार्टी परिणामों की "गंभीर समीक्षा" करेगी। प्रशांत किशोर के राजनीति छोड़ने की अटकलों पर वर्मा ने कहा, "यह उनका निजी फैसला है। लेकिन वह बिहार को नहीं छोड़ सकते हैं, और न ही बिहार उन्हें छोड़ सकता है। एक बार पूरे परिणाम आने के बाद, वह भविष्य की रणनीति पर अपनी प्रतिक्रिया साझा करेंगे।"
​जन सुराज के नेताओं ने भले ही यह दावा किया हो कि उन्होंने बिहार के एजेंडे में रोजगार और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को शामिल करने में सफलता पाई है, लेकिन उनका चुनावी डेब्यू शानदार नहीं रहा। अब सभी की निगाहें प्रशांत किशोर पर हैं कि क्या वह अपने शब्द पर कायम रहते हुए चुनावी राजनीति से संन्यास लेते हैं, या अपनी पार्टी की हार के बावजूद 'जन सुराज' अभियान को जारी रखते हैं।

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