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"श्री सरसंघसंचालक श्रीमंत मोहन भागवत द्वारा श्री संजय संग्रहालय एवं शोध संस्थान का अवलोकन कर हुए प्रफुल्लित हुए।"



भारत की विशाल निजी पांडुलिपि एवं धरोहर संपदा पर संस्थान के सेवा कार्य की प्रशंसा जयपुर स्थित श्री संजय शर्मा संग्रहालय एवं शोध संस्थान में आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघसंचालक श्री मोहन भागवत जी का विस्तृत भ्रमण कराया। श्रीमंत मोहन भागवत जी का संस्थान के अध्यक्ष एवं सह संस्थापक श्री तिलक शर्मा द्वारा माला पहनाकर स्वागत किया गया एवं जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से संग्रहालय का विस्तृत भ्रमण कराया।
श्री भागवत जी ने संग्रहालय में संरक्षित एक लाख से अधिक पांडुलिपियों दुर्लभ ताड़ पत्र ग्रंथों, चित्रांकन युक्त पद्धति एवं औषधि संरक्षण, प्राचीन हस्त निर्मित कागज, प्राकृतिक जल रंग, खनिज वनस्पति जैविक रंगों आदि के व्यवस्थित उपयोग को सराहना की।
उन्होंने भारत की 16 से अधिक भाषाओं तथा 200 से अधिक विषयों में उपलब्ध ज्ञान संपदा को एक ही छत के नीचे संरक्षित देखने को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। साथ ही उन्होंने यह भी देखा कि भारत में पिछले 2000 वर्षों में कागज बनाने के जो केंद्र विकसित हुए हैं। जिनमें बंगाल, कश्मीर ,जयपुर सांगानेर, अहमदाबाद,पंजाब,लाहौर खंभात,बुंदेलखंड आदि प्रमुख हैं उनका इतिहास और नमूने संग्रहालय में सुव्यवस्थित रूप से संरक्षित है।
इस दौरान उन्होंने संस्थान के संस्थापक स्वर्गीय पंडित राम कृपालु शर्मा जी की आजीवन साधना त्याग और असाधारण समर्पण की सराहना की और कहा कि उनके अथक प्रयासों के कारण भारत की अनमोल संस्कृति स्मृति आज भी संरक्षित स्वरूप में उपलब्ध है।
इस अवसर पर श्रीमंत मोहन भागवत जी ने बताया कि यह केवल संग्रहालय नहीं है बल्कि ततस्ट व निरपेक्ष होकर की गई ज्ञान साधना की ऊर्जा का भंडार है, अध्येता के लिये अध्ययन का आव्हान देने वाली ज्ञानशिला है, भारत का 'स्व' पूर्ण प्रकाश में दर्शाने वाला मूर्ति पुंज है। इसके निर्माता एवं रक्षक सभी देशवासियों की कृतज्ञता के पात्र हैं।
इस अवसर पर श्री भागवत जी ने पांडुलिपि संरक्षण डिजिटाइजेशन, शोध सहयोग और संस्कृत दस्तावेजीकरण में संस्थान के प्रभावी प्रयासों की सराहना की। अंत में अध्यक्ष एवं सह संस्थापक श्री तिलक शर्मा एवं संग्रहालय परिवार ने कहा कि श्रीमंत भागवत जी का यह भ्रमण संग्रहालय के लिए प्रेरणादायक और गौरवपूर्ण है जो भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा के संरक्षण हेतु नई ऊर्जा प्रदान करता है।

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