
सरकार हमको सड़क नहीं दे पा रही, और हेलीकॉप्टर की बढ़ाने को भीड़ लगा ली, पर हमारी तकलीफ़ किसी को नहीं दिखती
आज जो खबर लेकर आया हूँ न, सुनकर पहले तो हँसी आएगी, फिर गुस्सा भी चढ़ेगा।
कहते हैं कि मढ़ई–पचमढ़ी में हेलीकॉप्टर सेवा शुरू हो गई, बड़ी-बड़ी बतकही हो गई, नेता लोग हवा में उड़कर फोटो खिंचवा आए… लेकिन नीचे ज़मीन पर हालत वही ढाक के तीन पात।गाँव के लोग तो मज़ाक उड़ाते घूम रहे“सरकार हमको सड़क नहीं दे पा रही, और हेलीकॉप्टर चढ़ा रही है!
अरे भई, जहाँ बैलगाड़ी हिचकोले खाती जाती है, वहाँ हेलीकॉप्टर क्या विकास करेगा?”
भोपाल से उड़ने का किराया 3–5 हजार बताया गया।किसान लोग बोले—
“इतना तो हमारी दो महीना की सब्ज़ी बिकती है… हम कैसे उड़ेंगे? उड़ेंगे तो नेतागिरी वाले ही!”
मढ़ई-पचमढ़ी में भीड़ तो खूब लग गई, पर गाँव वालों का कहना—
“शोबा बढ़ाने को भीड़ लगा ली, पर हमारी तकलीफ़ किसी को नहीं दिखती।
ना स्कूल में मास्टर, ना अस्पताल में डॉक्टर, ना सड़क पर डामर… बस हेलीकॉप्टर!”
सबसे मज़ेदार बात तो ये कि नेताओं ने मंच से कहा—‘विकास होगा, रोजगार आएगा।’
गाँव वाले तंज कसते हुए बोले—
“हमको तो अब तक सरकारी दफ्तर के चक्कर से ही फुर्सत नहीं, रोजगार कहाँ से उड़कर आएगा?”उधर जंगल वाले इलाके के लोग बोले“हम तो जंगल बचा-बचाकर जी रहे हैं, और सरकार जंगल के ऊपर उड़ाकर पर्यटन बढ़ाने चली है। पहले पेड़ तो बचाओ!”
कुल मिलाकर भाई–बहन,हेलीकॉप्टर तो ऊपर आसमान में घूम गया,पर जनता की उम्मीदें फिर जमीन में धँस गईं।
और गाँव वाले आज भी हँसते–हँसते यही बोल रहे—ना सड़क बनी, ना सुविधा आई, बस उड़ानें ही उड़ रही हैं… जनता बस देखती ही रह गई।