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क्यूआर कोड से खाते फ्रिज और बेबसी का मंजर ।

"एक डिजिटल सुविधा, जो अब बन रही है सिरदर्द"

आज के दौर में, जब डिजिटल भुगतान ने हमारे जीवन को आसान बना दिया है, क्यूआर कोड (QR Code) स्कैन करके पैसे लेना-देना एक सामान्य प्रक्रिया है। छोटे दुकानदारों से लेकर बड़े व्यवसायियों तक, हर कोई इस सुविधा का लाभ उठा रहा है। लेकिन, विडंबना देखिए, यही सुविधा अब आम बैंक ग्राहकों के लिए एक *"अनचाहा जाल" बनती जा रही है।

हाल के दिनों में, कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहाँ बैंकों ने ग्राहकों के खातों को अचानक 'फ्रीज' (Freeze) कर दिया है।

बैंक और साइबर सुरक्षा एजेंसियाँ यह कार्रवाई मुख्य रूप से धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग (Money Laundering) के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए कर रही हैं।

समस्या की जड़ यह है:

1. साइबर फ्रॉड का जाल:-कई बार ठग धोखाधड़ी से कमाए गए पैसों को सीधे लाभार्थी के खाते में नहीं भेजते, बल्कि कई 'लेयर्स' (Layers) से गुजारते हैं। किसी आपराधिक गतिविधि से जुड़ा पैसा अगर गलती से भी किसी आम आदमी के खाते में आया और उसने उसे आगे इस्तेमाल किया, तो वह आम आदमी भी इस "संदिग्ध लेनदेन की चेन"का हिस्सा बन जाता है।

2. असामान्य लेन-देन:-जब कोई बचत खाता (Saving Account) अचानक और बार-बार, एक बड़ी संख्या में छोटी-बड़ी रकम क्यूआर कोड के जरिए प्राप्त करता है, तो बैंक इसे व्यवसायिक लेन-देन या संदिग्ध गतिविधि मान सकता है।

3. सायबर सेल का हस्तक्षेप:-किसी फ्रॉड की शिकायत होने पर, पुलिस की साइबर सेल जाँच के दौरान तुरंत उस खाते को फ्रीज करने के लिए बैंक को निर्देश देती है, जिसमें फ्रॉड का पैसा आया होता है।

खाता फ्रीज होने का मतलब है कि ग्राहक अपनी जमा-पूंजी का *"उपयोग नहीं कर सकता" । दैनिक जरूरतें, बच्चों की फीस, या अचानक आई चिकित्सा आपातकाल—हर जगह व्यक्ति लाचार हो जाता है।

"मेरा खाता एक साइबर शिकायत के कारण फ्रीज कर दिया गया, जबकि मुझे पता भी नहीं था कि मैंने जो पैसे क्यूआर कोड से लिए थे, वे फ्रॉड से जुड़े थे। मेरा सारा कारोबार रुक गया है।":- एक परेशान ग्राहक का दर्द।

सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि इस समस्या का *"निवारण तुरंत नहीं" हो पाता। खाते को अनफ्रीज कराने के लिए बैंक और सायबर सेल के दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं। इसमें लंबा समय, पैसा और मानसिक तनाव लगता है, और आम ग्राहक को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए जूझना पड़ता है।


इस विकट स्थिति से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

ग्राहकों के लिए (जन जागरूकता):-

1. स्रोत की जाँच:-केवल विश्वसनीय और ज्ञात स्रोतों से ही क्यूआर कोड स्कैन कराकर या यूपीआई के माध्यम से पैसे लें।

2. बिजनेस अकाउंट:** यदि आपका कारोबार है और आप बड़ी संख्या में लेनदेन करते हैं, तो बचत खाते के बजाय "करंट अकाउंट (Current Account)" का उपयोग करें।

3. लेनदेन का रिकॉर्ड:-बड़े लेन-देन का एक स्पष्ट रिकॉर्ड (जैसे: बिल, इनवॉइस, या लेन-देन का कारण) रखें, ताकि जरूरत पड़ने पर आप अपनी बात साबित कर सकें।

बैंकों और नियामकों के लिए (नीतिगत सुधार) :-

1. स्पष्ट गाइडलाइन:** आरबीआई (RBI) और बैंकों को आम ग्राहकों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिए कि किस प्रकार के लेन-देन को संदिग्ध माना जाएगा।

2. वरित समाधान तंत्र:-निर्दोष ग्राहकों के खातों को जल्द से जल्द अनफ्रीज करने के लिए एक "फास्ट-ट्रैक निवारण प्रणाली" स्थापित की जानी चाहिए।

3. शिकायत की सूचना:-बैंक को ग्राहक का खाता फ्रीज करने से पहले उसे सूचित करना चाहिए और आपत्ति दर्ज करने का पर्याप्त समय देना चाहिए (जब तक कि वह तत्काल सुरक्षा का मामला न हो)

कानूनी और तकनीकी स्तर पर :-

1. जवाबदेही तय करना:-फ्रॉड के पैसे की चेन में, निर्दोष आम आदमी के बजाय, असली अपराधियों की पहचान और उनकी जवाबदेही तय करने की तकनीकी प्रणालियों को मजबूत करना होगा।

2. साइबर सेल का विकेन्द्रीकरण:- सायबर सेल को फ्रीजिंग की प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता लानी होगी और ग्राहक की बात सुनने का मौका देना होगा।


डिजिटल इंडिया का सपना तभी साकार होगा जब आम आदमी का भरोसा डिजिटल लेन-देन पर कायम रहे। क्यूआर कोड से मिले पैसों को आँख बंद करके संदिग्ध मानना और खाते फ्रीज कर देना, इस भरोसे को तोड़ता है।

आवश्यकता है एक ऐसे "संतुलित तंत्र" की जो साइबर अपराधियों को तो दंडित करे, लेकिन निर्दोष ग्राहकों को सुरक्षा और त्वरित न्याय भी दे। सरकार, नियामक और बैंक मिलकर इस चुनौती का समाधान करें, तभी डिजिटल क्रांति का लाभ हर नागरिक तक पहुँच पाएगा।


मनीष सिंह
शाहपुर पटोरी
@ManishSingh_PT

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