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जयंती दुर्गा स्थान बड़ी पोखर बेगूसराय मे "शिव शिष्य परिवार" विष्णुपुर, बेगूसराय द्वारा सत्संग कार्यकर्म का आयोजन किया गया है ।

आज जयंती दुर्गा स्थान बड़ी पोखर बेगूसराय मे "शिव शिष्य परिवार" विष्णुपुर, बेगूसराय द्वारा सत्संग कार्यकर्म का आयोजन किया गया है । "शिव शिष्य परिवार" एक ऐसा संगठन है जो श्री अभिनव आनंद जी द्वारा स्थापित किया गया है। इसका लक्ष्य लोगों को यह समझाना है कि शिव ही गुरु हैं और अध्यात्म, शांति, समानता और मानवता को बढ़ावा देना है। यह संगठन समाज कल्याण के क्षेत्र में भी सक्रिय है, जो गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में काम करता है।
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गुरु केवल एक ही हैं - परम भगवान् श्रीकृष्ण। और जो केवल उनके शब्दों को दोहराते हैं वे भी गुरु बन जाते हैं। परन्तु निःसन्देह एक गुरु कभी स्वयं को भगवान् नहीं मानता। वह स्वयं को सदा दासों के दासों का दास ही मानता है।

(श्रील प्रभुपाद,श्रीमती एवं श्री भाटिया को पत्र, 23 नवम्बर 1975)
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ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद और हमारी गुरुपरंपरा की जय हो।"संदर्भ: भगवद् गीता 4.1" क्या आपको पता है अर्जुन से भी पहले भगवत गीता का ज्ञान करोडो वर्ष पहले सूर्य देव को दिया गया था?

https://aimamedia.org/newsdetails.aspx?nid=496696&y=1

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Bhagavad Gita Verse Of the Day: Chapter 3, Verse 30👇

मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा |
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वर: || 30||

मयि–मुझमें; सर्वाणि-सब प्रकार के कर्माणि-कर्म को; सन्यस्य-पूर्ण त्याग करके; अध्यात्मचेतसा-भगवान में स्थित होने की भावना; निराशी:-कर्म फल की लालसा से रहित, निर्ममः-स्वामित्व की भावना से रहित, भूत्वा-होकर; युध्यस्व-लड़ो; विगत-ज्वरः-मानसिक ताप के बिना।

Translation👇

BG 3.30: अपने समस्त कर्मों को मुझको अर्पित करके और परमात्मा के रूप में निरन्तर मेरा ध्यान करते हुए कामना और स्वार्थ से रहित होकर अपने सन्तापों को त्याग कर युद्ध करो।

Commentary👇

अपनी विलक्षण शैली में श्रीकृष्ण पहले विषय को प्रतिपादित करते हैं और तत्पश्चात् उसका सार प्रकट करते हैं। 'अध्यात्मचेतसा' शब्द का अर्थ 'भगवान को समर्पित करने की भावना के साथ' तथा 'संन्यस्य' शब्द का अर्थ 'जो भगवान को समर्पित न हो उन सबका परित्याग करना' है। 'निराशी' शब्द का तात्पर्य कर्मों के फलों में आसक्ति न रखने से है। स्वामित्व की भावना को त्यागने के लिए सभी कर्मों को भगवान के प्रति समर्पित करना और अपने निजी लाभ, लालसा और शोक का त्याग करना आवश्यक है। पिछले श्लोक में दिए गए उपदेशों का सार यह है कि हमें निष्ठापूर्वक यह चिन्तन करना चाहिए-"मेरी आत्मा परम शक्तिशाली भगवान का अणु अंश है। वे सभी पदार्थों के भोक्ता और स्वामी हैं। मेरे सभी कर्म उनके सुख के निमित्त हों और इसलिए मुझे अपने सभी कर्तव्यों का पालन उनके प्रति यज्ञ या समर्पण की भावना से करना चाहिए। उनके द्वारा प्रदत्त शक्ति से ही मैं अपने यज्ञ कर्म को सम्पन्न करता हूँ। इसलिए मुझे अपने कर्मों के शुभ परिणामों का श्रेय नहीं लेना चाहिए।"
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कलि-काले नाम-रूपे कृष्ण-अवतार । नाम हैते हय सर्व-जगत्निस्तार ।।

इस कलियुग में भगवान् के पवित्र नाम अर्थात् हरे कृष्ण महामंत्र भगवान् कृष्ण का अवतार है। केवल पवित्र नाम के कीर्तन से मनुष्य भगवान् की प्रत्यक्ष संगति कर सकता है। जो कोई भी ऐसा करता है, उसका निश्चित रूप से उद्धार हो जाता है।

महामंत्र 💫👉हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम , राम राम हरे हरे।।
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thanks & regards

Jeetendra Sharan
(ICTRD Certified Digital Marketing Expert )

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