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SIR: पहचान की ‘सुरक्षा’ या लोकतंत्र की नई कड़ी? — एक विधिक, संवैधानिक, राजनैतिक और सामाजिक विश्लेषण


भारत का इतिहास बार-बार यह पढ़ाता है: जब नागरिकों ने आँखें बंद कीं, सत्ता ने अप्रत्यक्ष नियंत्रण के नए साधन खोज लिए। आज State Identification Register (SIR) के बहाने वही खतरा — अधिक आधुनिक और तकनीकी रूप में — फिर उभर रहा है। यह विषय सिर्फ नीति-विवाद का नहीं; यह संवैधानिक अधिकार, नागरिक-गरिमा, सामाजिक संवेदनशीलता और राजनैतिक शक्ति के पुनर्वितरण का मुद्दा है। नीचे इसका गहन विश्लेषण और तत्काल सुझाव दिए जा रहे हैं।

1. विधिक और संवैधानिक संदर्भ — अधिकारों का परिक्षेत्र

1. अनुच्छेद 14, 19 और 21 का आयाम

* पहचान और निजता से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने Puttaswamy निर्णय में निजता को संवैधानिक अधिकार माना। किसी भी बड़े पैमाने के डेटा-रजिस्टर पर तभी वैधता की मुहर लग सकती है जब वह कानून, आवश्यकता और प्रोप्रोर्शनैलिटी (अनुपातिकता परीक्षण) की कसौटी पर खरा उतरे।
* SIR यदि अनौपचारिक नोटिस या प्रशासकीय आदेश से लागू हो रहा है, और पारदर्शिता, समीक्षनीयता व समयावधि नहीं बताई जा रही तो यह Puttaswamy के मानदंडों के विपरीत होगा।

2. कानून की उपस्थिति और गुणवत्ता

* किसी भी राष्ट्रीय पहचान-रजिस्टर के लिए स्पष्ट, विवेचित और संसदीय मंज़ूरी प्राप्त विधेयक आवश्यक है — जिसमें उद्देश्य-नियत (purpose limitation), डेटा-रिटेंशन, एक्सेस-लॉग, ऑडिट-प्रावधान, सिविल व आपराधिक दंड, तथा हर्जाना और संशोधन की व्यवस्था होनी चाहिए।
* अभी की जो ‘नीति/आदेश’ है वह न्यूनतम विधिक सुरक्षा भी नहीं दे रही; यह संवैधानिक मसलों पर चुनौती के लिए उपयुक्त है।

3. डाटा-प्रोटेक्शन का खालीपन

* DPDP नोटिफिकेशन जैसे नियमों के साथ भी यदि ज्यादा-से-ज्यादा डाटा का संचयन और अनिश्चित-समय तक रिटेंशन की प्रथा बनती है, तो ‘गोपनीयता’ के नाम पर अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता और पारदर्शिता को सीमित किया जा सकता है। डेटा-नियामक का स्वतंत्र, पारदर्शी और निर्बाध संवेदनशील होना अनिवार्य है — न कि प्रशासन का विस्तार।

2. राजनीतिक परिप्रेक्ष्य — सत्ता, नियंत्रण और नैरेटिव-प्रबंधन

1. नैरेटिव-निर्माण का लाभ

* बड़े पहचान-रजिस्टर शक्ति को दो तरह से सुदृढ़ करते हैं: (क) प्रशासनिक पहुँच में वृद्धि (प्रवेश-डायनामिक्स पर नियंत्रण), (ख) नैरेटिव-प्रबंधन के लिए “किताबी” वैधता — जब कोई प्राधिकरण कहे कि ‘डेटा आधार पर’ निर्णय लिए गए।
* सत्ता जब ऐसी प्रणालियों को बिना सार्वजनिक विमर्श और पारदर्शी कानून के लागू करती है, तो वह नागरिक-समिति की सहमति के बिना नियंत्रण के नए तंत्र रख देती है।

2. चुनौती: सुरक्षा बनाम अधिकार

* राष्ट्रीय सुरक्षा या प्रशासनिक सुविधा के नाम पर डेटा संचयन को सामान्यीकृत करना राजनीतिक निर्णय है; पर उसका असल परिणाम निगरानी-क्षेत्र के विस्तार और नियंत्रण संस्कृति का पोषक बनेगा—विशेषकर अल्पसंख्यक या कमजोर समूहों के लिए।

3. सामाजिक प्रभाव — बहिष्कार, विपरीत प्रभाव और समावेशन का संकट

1. अंतर्निहित जोखिम: बहिष्करण (Exclusion)

* डिजिटल/कागजी पहचान की नई कसौटियाँ जीविकोपार्जन, वोटिंग अधिकार, राशन, पेंशन और सरकारी सेवाओं तक पहुंच में बाधा डाल सकती हैं। उन समूहों के लिए जो दस्तावेज़ों-विहीन हैं (आवासी, प्रवासी, आदिवासी, दलित, नागरिकता विवाद के शिकार), भ्रम तथा हाशिएकरण गहरा सकता है।

2. चिल्लियाती संवेदनशीलता: कमजोर कर्मचारियों पर दबाव

* BLOs पर शादी-समारोह के मौसम में जबरदस्त लक्ष्य थोपना, रात-दिन ड्यूटी और प्रशासनिक धमकियाँ—और उस तरह की मानसिक स्वास्थ्य-आफतें (आत्महत्याएं) यह बताते हैं कि नीति-अमल में मानव-दृष्टि का अभाव है। नियम बनाए जाते समय जीवन-चक्र, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ और सांस्कृतिक प्रसंगों का सम्मान होना चाहिए।

3. भरोसा और अभिव्यक्ति पर शीतकालीन प्रभाव

* जब नागरिक समझें कि उनकी हर जानकारी किसी केंद्रीय फाइल में रहेगी, तो सार्वजनिक जीवन में अभिव्यक्ति का ‘चिलिंग-इफ़ेक्ट’ आएगा — पत्रकार, नागरिक बेबाक आवाज़ उठाने से पहले सोचना शुरू कर देंगे। लोकतंत्र की आलोचनात्मक क्षमता क्षीण होगी।

4. SIR बनाम Aadhaar: द्वितीयक सबक और सतर्कता

* Aadhaar - अनुभव से मिले सबक स्पष्ट हैं: उपयोग-विस्तार (scope creep), लिंकिंग-दबाव, और डेटा-सुरक्षा खामियाँ। SIR की स्वरूपवत्ता उसी दिशा में जा सकती है यदि प्रारम्भिक तौर पर कठोर कानूनी सीमाएँ न डालीं जाएँ।
* इसलिए कोई भी नया पहचान-रजिस्टर बनते समय “वरिष्ठ्ता सिद्धांत (least intrusive means)”, डेटा-मिनिमाइज़ेशन, पर्पज-लिमिटेशन और स्वैच्छिकता की सुनिश्चितता प्राथमिक शर्तें होनी चाहिए।

5. क्या करना चाहिए — तात्कालिक और दीर्घकालिक कदम (नीति-सूची)

## तात्कालिक (Immediate)

1. रोल-आउट पर मोराटोरियम — जब तक संसद में स्पष्ट, स्वतंत्र और सार्वजनिक चर्चा न हो और संवैधानिक परीक्षण न पार करे, SIR के अन्तर्ज्ञानिक उपयोग पर तत्काल प्रतिबंध।
2. BLO/सरकारी कर्मचारी सुरक्षा — दबाव वाले लक्ष्यों को तत्काल हटाया जाए; शादी-त्योहार, पारिवारिक दायित्वों के समय संवेदनशीलता बरती जाए; आत्महत्या/हत्या की घटनाओं की स्वतंत्र जांच हो।
3. लेटेस्ट DPIA और स्वतंत्र ऑडिट — किसी भी सिस्टम लॉन्च से पहले Data Protection Impact Assessment सार्वजनिक और स्वतंत्र विशेषज्ञों से कराया जाए।

## विधिक/संवैधानिक (Medium term)

1. पारदर्शी कानून — SIR केवल संसद द्वारा पारित कानून के अंतर्गत और सार्वजनिक बहस से होकर हो; कानून में स्पष्ट परिभाषाएँ: उद्देश्य, सीमाएँ, एक्सेस कंट्रोल, रिटेंशन, साझा नीतियाँ और ऑडिट मैकेनिज्म।
2. स्वतंत्र डेटा-नियमक (ICO-type) — राजनीतिक दबाव से मुक्त, पावर के दुरुपयोग पर नज़र रखने वाला संस्थान; पावर: डेटा उल्लंघन पर जुर्माना, निलंबन और हर्जाने की शक्ति।
3. न्यायिक-समीक्षा और राहत — नागरिकों को आसानी से राहत मिल सके; डीटेल्ड रीड्रेसल मैकेनिज्म और मुआवज़ा प्रावधान कानून में जोड़े जाएँ।

## सामाजिक-राजनीतिक (Long term)

1. सामाजिक संवाद और सहमति-निर्माण — नागरिक समाज, प्रेस, यूनियनों, स्कूल, और नागरिक-समूहों के साथ व्यापक पारदर्शी चर्चा।
2. डिजिटल साक्षरता और वैकल्पिक पहचान मॉडल — डिजिटल साक्षरता बढ़ाकर नागरिकों को समझदारी से निर्णय लेने का अधिकार दिया जाए; कम-केंद्रित, विकेंद्रीकृत पहचान विकल्प पर काम हो।
3. अल्पसंख्यक सुरक्षा की कन्वेंशंस — पहचान के आधार पर किसी भी तरह के लक्ष्यीकरण से बचने के लिए विशेष संवैधानीक सुरक्षा-क्लॉज।

6. नागरिकों के लिए व्यावहारिक सुझाव (Actionable Civic Toolkit)

* जानकारी माँगें : RTI/पीआईएल के माध्यम से SIR की कानूनी आधार, डेटा-रिटेंशन नीति और एक्सेस-लॉग माँगें।
* स्थानीय शिकायत निवारण : BLOs पर दबाव की घटनाओं को रिकॉर्ड करें; यूनियनों/शिक्षक संघों के साथ समस्या उठाएँ।
* कानूनी सक्रियता : संवैधानिक चुनौतियाँ (PIL) दायर कर सकें — विशेषकर जहाँ SIR बिना कानून के लागू हुआ हो या अधिकारों पर प्रभाव हो।
* सामाजिक-आंदोलन : मोराटोरियम की मांग, स्वतंत्र DPIA और संसद में पारदर्शिता की मांग को व्यापक रूप से उठाएँ।

7. पहचान एक अधिकार है — उसे सत्ता का औजार न बनने दें

SIR केवल डेटा-फील्ड भरवाने की बात नहीं—यह लोकतांत्रिक सहमति, प्राथमिकता-निर्धारण और नागरिक-नियंत्रण के प्रश्न से जुड़ा है। अपनी पहचान आप खुद रखें; उसे किसी अनिश्चित और निरीह विधि-निर्देश की जेल न बनने दें।

क़ानून का असल उद्देश्य हो-ना चाहिए—निहित अधिकारों की रक्षा, न कि सत्ता के निरीक्षण-तंत्र का संवर्धन। जबतक जनता की सहमति, पारदर्शिता और विधिक सुरक्षा की गारंटी नहीं होगी, SIR पर स्पष्ट, ऋद्ध और पारदर्शी नियामक ढाँचे और संसदीय बहस के बिना आगे बढ़ना भारतीय लोकतंत्र के लिए जोखिम भरा और अस्वीकार्य होगा।

(सुझावित शीघ्र कार्रवाई) : मोराटोरियम की मांग, स्वतंत्र DPIA रिपोर्ट सार्वजनिक करना, संसद में विशेष समिति द्वारा बहस, और BLO-पर देहाती संवेदनशीलता के लिए प्रशासनिक निर्देश — इन्हें सार्वजनिक रूप से मांगना अब लोकतांत्रिक कर्तव्य है।

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