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मतदाता सूची पुनरीक्षण में सख्ती बढ़ी, पर सवाल यह भी—क्या दबाव लोकतंत्र बचा रहा है या उसकी कीमत मानव जीवन चुका रहा है?

मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान में लापरवाही पर प्रशासन ने भले ही कड़ा रुख अपना लिया हो, पर इसके साथ ही एक गंभीर प्रश्न भी सामने खड़ा हो गया है—क्या यह प्रक्रिया संविधानिक जिम्मेदारी के नाम पर अत्यधिक प्रशासनिक दबाव का रूप ले चुकी है?

कोथावां, कछौना और बेहंदर क्षेत्र में बीएलओ के कार्य में देरी पाए जाने पर 60 शिक्षकों का वेतन रोक दिया गया है, जबकि जिन बीएलओ ने 10 से कम पत्रकों का डिजिटाइजेशन किया है, उन्हें एफआईआर की चेतावनी दी गई है।

इसके अलावा 352 बीएलओ को अंतिम चेतावनी जारी की गई है और हर एआरओ को 24 घंटे के भीतर 8,000 पत्रकों का डिजिटाइजेशन पूरा करने का लक्ष्य दिया गया है।

## समय सही है या सख्ती? — विवाहों के मौसम में दवाब पर सवाल

वर्तमान समय देश के अधिकांश राज्यों में विवाह-लग्न का है। ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से यही वह अवधि होती है जब शिक्षक, पंचायत कर्मचारी और विद्यालय आधारभूत संरचनाओं से जुड़े लोग कार्यभार और सामाजिक जिम्मेदारियों के दोहरे दबाव में रहते हैं।

ऐसे समय में प्रशासन द्वारा दिन-रात काम कराने, वेतन रोकने, एफआईआर की धमकी देने और कई जिलों में छुट्टियाँ रद्द करने जैसे आदेशों पर सवाल उठ रहे हैं।

लोग पूछ रहे हैं— “क्या लोकतंत्र का निर्माण भय, दबाव और दंड के सहारे होगा?”

## मानवाधिकार और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर

आश्चर्यजनक और चिंताजनक तथ्य यह है कि पिछले कुछ दिनों में ही 8 से 10 बीएलओ द्वारा आत्महत्या करने की खबरें सामने आई हैं।

क्या यह केवल संयोग है? या यह इस बात का संकेत है कि प्रशासनिक प्रक्रिया मानव मनोविज्ञान और मानवाधिकारों की सीमाओं को पार कर चुकी है?

शिक्षक संघों का आरोप है— “यह कार्य लोकतांत्रिक जिम्मेदारी से अधिक प्रशासनिक आतंक बन गया है।”

## लोकतांत्रिक प्रक्रिया बनाम सत्ता संतुष्टि?

मतदाता सूची पुनरीक्षण निस्संदेह अत्यंत संवेदनशील और महत्वपूर्ण कार्य है। निर्वाचन आयोग ने वर्तमान पुनरीक्षण को भविष्य की चुनावी निष्पक्षता की बुनियाद बताया है।

लेकिन सवाल यह है—
* क्या सत्ता की जल्दबाजी या राजनीतिक लक्ष्य शिक्षकों और कर्मचारियों की जीवन परिस्थिति, गरिमा और मानसिक स्वास्थ्य से ऊपर रखे जा सकते हैं?
* क्या संविधान की रक्षा उसी संविधान के नागरिकों और कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव बनाकर किया जाना चाहिए?

## कानून और संवेदनशीलता का संतुलन आवश्यक

लोकतंत्र केवल नियमों और नोटिफिकेशन से नहीं— बल्कि मानवीय संवेदनशीलता, श्रम के सम्मान और गरिमा आधारित प्रशासन से मजबूत होता है।

यदि बीएलओ, शिक्षक और ग्रामीण प्रशासनिक ढांचा ही मानसिक और शारीरिक रूप से टूटने लगे, तो अंतिम सवाल यही उठेगा— “मतदाता सूची तो तैयार हो जाएगी, लेकिन क्या यह उस लोकतंत्र की सूची होगी जिसमें नागरिक बचेंगे पर इंसान थक चुके होंगे?”

प्रशासनिक सख्ती आवश्यक है, परंतु वह ऐसी नहीं हो सकती कि वह भय और दवाब के रास्ते लोकतंत्र को ही कमजोर कर दे।

मतदाता सूची सटीक होनी चाहिए—यह लोकतंत्र की अनिवार्यता है; लेकिन यह भी उतना ही अनिवार्य है कि कर्मचारी, शिक्षक और बीएलओ वह सूची भय से नहीं—कर्तव्य, सम्मान और मानवीय कार्यस्थितियों में तैयार करें।

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