logo

गाजीपुर की अफीम फैक्ट्री: एक विस्तृत परिचय

गाजीपुर, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर, गंगा नदी के तट पर स्थित है और यहाँ की सरकारी अफीम एवं क्षारक कारखाना (Government Opium and Alkaloid Works, GOAF) भारत की अफीम प्रसंस्करण उद्योग की नींव है। यह कारखाना न केवल भारत का सबसे पुराना अफीम प्रसंस्करण केंद्र है, बल्कि वैश्विक स्तर पर अफीम-आधारित दवाओं के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 43 एकड़ क्षेत्र में फैला यह कारखाना अफीम के कच्चे माल से दर्द निवारक दवाओं के लिए आवश्यक क्षारकों (alkaloids) का उत्पादन करता है। यह भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन कार्य करता है और नईमुख (मध्य प्रदेश) में स्थित दूसरे कारखाने के साथ मिलकर संचालित होता है।
इतिहास और स्थापना
गाजीपुर अफीम फैक्ट्री की स्थापना 1820 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई थी, जब इसे बनारस अफीम एजेंसी (Benaras Opium Agency) के नाम से शुरू किया गया। यह भारत का पहला अफीम प्रसंस्करण कारखाना था, जो अफीम को चाय व्यापार के बदले चीन को निर्यात करने के ब्रिटिश साम्राज्यवादी उद्देश्य से स्थापित हुआ। उस समय प्रसंस्कृत अफीम कोलकाता भेजी जाती थी, जहाँ से इसे नीलामी के बाद चीन के दक्षिणी तट पर तस्करी के माध्यम से भेजा जाता था। अफीम की खेती भारत में 15वीं शताब्दी से चली आ रही थी, लेकिन मुगल काल में यह एक प्रमुख व्यापारिक वस्तु बनी। 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अफीम उत्पादन पर एकाधिकार हासिल कर लिया, और 1820 में गाजीपुर कारखाने ने नियंत्रित अफीम उत्पादन की शुरुआत की।
मुख्य मील के पत्थर:
1820: कारखाने की स्थापना।
1933: नईमुख कारखाने की स्थापना।
1942-1943: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान क्षारक संयंत्र (alkaloid plant) की स्थापना, जो स्वदेशी डिजाइन पर आधारित था। इससे अफीम से मोर्फीन और कोडीन जैसे क्षारकों का उत्पादन शुरू हुआ।
1945: घाजीपुर में क्षारक निष्कर्षण की औपचारिक शुरुआत।
1976: नईमुख कारखाने में भी क्षारक उत्पादन शुरू।
1980 के दशक: अफीम निर्यात पर प्रतिबंध लगने से उत्पादन प्रभावित हुआ।
2017: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अस्थायी बंदी, लेकिन बाद में संचालन बहाल।
यह कारखाना ब्रिटिश काल की अफीम युद्धों (Opium Wars) से जुड़ा हुआ है, जहाँ अफीम व्यापार ने ब्रिटेन को चीन पर आर्थिक वर्चस्व दिलाया। साहित्य में भी इसका उल्लेख मिलता है, जैसे अमिताव घोष के उपन्यास "सी ऑफ पॉपीज" में।
संचालन और प्रक्रिया
कारखाना मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लाइसेंस प्राप्त किसानों से अफीम प्राप्त करता है। भारत संयुक्त राष्ट्र की नारकोटिक ड्रग्स संधि (1961) के तहत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ गम अफीम (gum opium) की खेती वैध रूप से होती है। केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो (CBN) लाइसेंस जारी करता है, और सारी उपज सरकार द्वारा खरीदी जाती है।
प्रसंस्करण प्रक्रिया:
संग्रहण: अफीम को खेतों से एकत्र कर घाजीपुर और नईमुख कारखानों में भेजा जाता है।
शुष्कीकरण और विश्लेषण: अफीम को सुखाया जाता है और गुणवत्ता जांच की जाती है।
प्रसंस्करण: निर्यात के लिए अफीम को पैक किया जाता है, जबकि क्षारक निष्कर्षण के लिए रासायनिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। क्षारक संयंत्र में अफीम से मोर्फीन, कोडीन आदि निकाले जाते हैं।
उत्पाद वितरण: क्षारक भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों को दर्द निवारक दवाओं, खांसी की दवाओं और डी-एडिक्शन के लिए सप्लाई किए जाते हैं। राज्य सरकारों को डी-एडिक्शन के लिए अफीम दी जाती है, और वैश्विक संकटों के लिए बफर स्टॉक रखा जाता है।
उत्पाद: कारखाना फार्माकोपिया-ग्रेड क्षारक जैसे कोडीन फॉस्फेट, मोर्फीन सॉल्ट्स, डायोनिन (इथिलमोर्फीन), मोर्फीन हाइड्रोक्लोराइड, थेबेन, नोस्कापाइन आदि का उत्पादन करता है। यह भारत का सबसे बड़ा अफीम-आधारित उत्पादक है।
कारखाने में 1,432 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनकी सुरक्षा केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) प्रदान करता है। वर्तमान में मुख्य नियंत्रक श्री अनिल रामटेके हैं, जबकि घाजीपुर के महाप्रबंधक श्री राजेंद्र कुमार हैं।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
हालांकि कारखाना अभी भी संचालित है, लेकिन यह अपनी भव्यता खो चुका है। 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्पादन हाल के वर्षों में 200-300 टन से घटकर 80 टन रह गया है, जबकि ब्रिटिश काल में यह हजारों टन था। कर्मचारियों की संख्या भी 5 वर्ष पहले के 560 से घटकर 225 हो गई है। 1980 के दशक में अफीम निर्यात प्रतिबंध के कारण लाइसेंस सीमित हो गए, जिससे अवैध तस्करी और स्थानीय नशे की समस्या बढ़ी। 2017 में प्रदूषण मुद्दों के कारण उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसे बंद कर दिया था, लेकिन बाद में बहाल किया गया।
गाजीपुर का यह कारखाना क्षेत्रीय औद्योगिक पतन का प्रतीक बन चुका है। आसपास की चीनी मिलें, कपास कारखाने और अन्य उद्योग बंद हो चुके हैं, जिससे बेरोजगारी और अपराध बढ़ा है। हालाँकि, 2017 में सरकार ने पॉपी स्ट्रॉ (concentrated poppy straw) तकनीक पर आधारित निजीकरण का परीक्षण शुरू किया, जिसमें रुसन फार्मा और एमबियो लिमिटेड को 2 हेक्टेयर में खेती का अनुबंध दिया गया।
महत्व
गाजीपुर अफीम फैक्ट्री न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की औपनिवेशिक इतिहास, नशीली दवाओं के नियंत्रण और फार्मास्युटिकल उद्योग की कहानी बयान करती है। यह वैश्विक दवा बाजार में भारत की भूमिका को मजबूत करता है, लेकिन चुनौतियों जैसे प्रदूषण, तस्करी और उत्पादन में कमी से जूझ रहा है। यदि सुधार किए जाएँ, तो यह क्षेत्रीय विकास का केंद्र बन सकता है।

0
108 views