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लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं : कमजोर विपक्ष

लोकतंत्र की जीवंतता और सफलता के लिए यह आवश्यक है कि सत्ता पक्ष "मजबूत और सजग विपक्ष" की कसौटी पर खरा उतरे। लेकिन, हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर इस चिंता को गहरा दिया है कि देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक में "कमजोर विपक्ष" की स्थिति लोकतंत्र के भविष्य के लिए ठीक नहीं है।

बिहार, जिसने अतीत में जेपी आंदोलन के माध्यम से तानाशाही शक्तियों को चुनौती दी थी, आज वही राज्य एक सर्वशक्तिमान सत्ता पक्ष और बिखरे हुए विपक्ष के बीच संतुलन खोता दिख रहा है ।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सत्तारूढ़ गठबंधन (NDA) की प्रचंड जीत ने एकतरफा राजनीतिक वर्चस्व स्थापित कर दिया है। जहाँ एक गठबंधन ने 202 सीटें जीतकर इतिहास रचा, वहीं विपक्षी महागठबंधन मात्र 35 सीटों पर सिमट गया। यह केवल सीटों का गणित नहीं, बल्कि "लोकतांत्रिक विमर्श" के कमजोर होने का संकेत है।

एक कमजोर विपक्ष का सीधा मतलब है कि सरकार पर "अंकुश" लगाने वाला कोई नहीं है। इसके गंभीर परिणाम लोकतंत्र पर पड़ते हैं:

1. जवाबदेही में कमी:-सत्ता पक्ष पर सवाल उठाने और उसे जनता के प्रति "जवाबदेह" बनाने का सबसे बड़ा काम विपक्ष ही करता है। विपक्ष के कमजोर होने से सरकारें मनमानी कर सकती हैं और उनकी नीतियों की "निष्पक्ष समीक्षा" नहीं हो पाती।
2. वैकल्पिक विमर्श का अभाव:- लोकतंत्र में विभिन्न विचारों का होना अनिवार्य है। यदि विपक्ष कोई "विश्वसनीय वैकल्पिक विमर्श" प्रस्तुत नहीं कर पाता, तो जनता के पास चयन का कोई मजबूत विकल्प नहीं बचता।
3. संस्थाओं पर दबाव:-जब एक पार्टी सर्वशक्तिमान बन जाती है, तो नौकरशाही और जाँच संस्थाएँ सत्ता के सामने झुक सकती हैं, जिससे "लोकतांत्रिक संस्थाएँ विकृत" होने लगती हैं।
4. बड़ी आबादी की अनदेखी:-जिन करोड़ों मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल को वोट नहीं दिया, उनकी राय, माँगे और आवाज "असमाधानित" रह जाती है ।

बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम केवल एक राजनीतिक हार-जीत नहीं हैं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए एक "गहन चेतावनी" हैं। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत पक्ष के साथ-साथ एक "मजबूत विपक्ष" भी आवश्यक है, जो सरकार को निरंकुश होने से रोक सके। जब विपक्ष लड़ने का तरीका भूल जाता है, तो लोकतंत्र का ध्वंस अचानक नहीं, बल्कि "खामोशी" में होता है। बिहार के विपक्षी दलों को इस त्रासदी से सबक लेना होगा और खुद को एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्थापित करना होगा, अन्यथा यह खालीपन भारतीय लोकतंत्र को और कमजोर करता चला जाएगा।

मनीष सिंह
शाहपुर पटोरी
@ManishSingh_PT

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