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एसआईआर अभियान में वाहवाही लूट गए बीएलओ, असली पसीना बहाने वाले कर्मचारी सम्मान को तरसे, प्रशासन के रवैये से भारी नाराजगी

बैतूल/सारणी। भारत निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची को त्रुटिरहित और पारदर्शी बनाने के लिए चलाए गए 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' (SIR) अभियान का शोर अब थम चुका है, लेकिन सारणी में इस अभियान के बाद एक नया विवाद खड़ा हो गया है। एक तरफ जहाँ बैतूल जिला प्रशासन और कलेक्टर द्वारा अच्छे प्रदर्शन के लिए बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) को सम्मानित किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ तपती धूप और बारिश में घर-घर जाकर सर्वे का असली काम करने वाले मैदानी कर्मचारी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

पर्दे के पीछे की मेहनत और प्रशासन की अनदेखी

खबरों के मुताबिक, मतदाता सूची पुनरीक्षण के इस महाअभियान में प्रशासन की नजर केवल बीएलओ तक ही सीमित रह गई। धरातल पर स्थिति यह थी कि मतदाता सूची में नए नाम जोड़ने, मृत या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाने और त्रुटि सुधार के लिए आवश्यक फॉर्म भरने का पसीने छुड़ा देने वाला काम सहयोगी कर्मचारियों और अन्य मैदानी अमले ने किया।

नाराज कर्मचारियों का कहना है कि, "हमने दिन-रात एक करके घर-घर दस्तक दी, लोगों से दस्तावेज मांगे और जटिल फॉर्म भरे। उस वक्त काम का दबाव इतना था कि कई बीएलओ के तो पसीने छूट गए थे, और उन्होंने काम का बड़ा हिस्सा हमारे भरोसे छोड़ दिया था। लेकिन जब सफलता का श्रेय लेने और सम्मान पाने की बारी आई, तो अधिकारियों ने हमें 'झूठे मुंह' भी नहीं पूछा।"

सारा श्रेय बीएलओ को, मेहनतकशों के हाथ खाली

इस अभियान में सारणी क्षेत्र में कार्य की गुणवत्ता को सराहा गया है, लेकिन सफलता की नींव रखने वाले कर्मचारियों में भारी रोष है। उनका आरोप है कि जिला प्रशासन और स्थानीय अधिकारियों ने सारी वाहवाही और पुरस्कार बीएलओ की झोली में डाल दिए।

एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "अधिकारी आते हैं, बीएलओ से बात करते हैं और चले जाते हैं। जिसने चप्पलें घिसकर असली डेटा इकट्ठा किया, उसे शाबाशी देना तो दूर, उसका जिक्र तक नहीं किया गया। यह हमारे स्वाभिमान पर चोट है।"

आमला बना मिसाल, सारणी में असंतोष

प्राप्त जानकारी के अनुसार, एसआईआर मामले में बैतूल जिले का आमला ब्लॉक प्रथम स्थान पर रहा है, जो जिले के लिए गर्व की बात है। सारणी में भी कार्य की गति और शुद्धता अच्छी रही, लेकिन यहाँ का प्रशासन टीम वर्क की भावना को बनाए रखने में विफल नजर आ रहा है। यह विडंबना ही है कि जिस अभियान का उद्देश्य 'लोकतंत्र की मजबूती' है, उसी अभियान में काम करने वाले एक बड़े तबके के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है।

कर्मचारियों की नाराजगी इस बात को लेकर ज्यादा है कि सम्मान समारोहों में केवल पदनाम (Designation) देखा गया, न कि कर्मठता। यह स्थिति भविष्य में होने वाले किसी भी शासकीय अभियान के लिए घातक सिद्ध हो सकती है, क्योंकि यदि जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल इसी तरह टूटता रहा, तो वे अगली बार उतनी शिद्दत से काम नहीं करेंगे।

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