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IAS वर्मा विवाद पर कड़ा बयान — समाज को चुभन देने वाला सत्य

🟥 कायिक, मानसिक और वाचिक—ये तीनों केवल क्रियाएँ नहीं, बल्कि मन और मस्तिष्क की वास्तविक अवस्था का प्रतिबिंब हैं।
जो शरीर करता है, वह मन करवाता है। और मन में जो चलता है, वही जुबान से शब्दों के रूप में बाहर आता है।

इसी क्रम में IAS वर्मा जी का बयान उनके मनोविज्ञान का आईना बन गया।
बात देशहित की नहीं थी—
बात थी समाज को बाँटने की।
उनके शब्दों ने यह साफ कर दिया कि किसी व्यक्ति की सोच उसे कहाँ तक गिरा सकती है।

यह केवल ब्राह्मण समाज पर नहीं,
बल्कि हर वर्ग पर एक करारा तमाचा है।
जिस पद पर बैठकर समाज को जोड़ना चाहिए, वहाँ से विभाजनकारी शब्द निकलना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

किसी भी वर्ण—ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र—की श्रेष्ठता उसके कर्मों में होती है।
लेकिन ऐसे विचारहीन शब्द ही वह कारण हैं जिनसे समाज में
व्यभिचार, अव्यवस्था और अविश्वास बढ़ता है।

जब प्रशासन कमजोर पड़ता है,
तो हर व्यक्ति की हिम्मत बढ़ जाती है कि वह शब्दों की मर्यादा तोड़कर जो चाहे बोल दे।
शब्दों का विवेक न होना ही विवेकहीन पुरुष का संकेत है।

ज़रा उस पिता से पूछिए,
जिसकी बेटी को कोई व्यक्ति छल-कपट और झूठे सपनों में फंसाकर घर से भगा ले जाता है।
समाज से लड़कर की गई ऐसी शादियों का परिणाम
वर्षों बाद जब बेटी के आँसुओं से निकलता है,
तो उसमें पछतावा ही बचता है—क्षमा नहीं।

कुछ लोग इसे सामान्य मान लेंगे,
पर ध्यान रहे—
समाज के चारों वर्ण श्रेष्ठ हैं,
और अपने संस्कारों के भीतर रहकर किए गए कर्म ही कल्याण देते हैं।
मर्यादा छोड़ देने पर
पद, पैसा या ताकत—कुछ भी मनुष्य को नहीं बचा पाते।
ईश्वर मृत्यु से पहले ऐसा दंड देता है कि मनुष्य स्वयं अपने कर्मों को कोसता रह जाता है।

समाज सुधारक बनो—
भाग्य-विधाता, न कि प्राण-घातक।

और इसलिए देश की न्यायपालिका व प्रशासन से निवेदन है कि
केवल “कारण बताओ नोटिस” पर्याप्त नहीं है।
इस मामले पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए,
ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति अपने पद, जाति या सत्ता के अभिमान में
समाज की मर्यादा और एकता को ठेस न पहुँचाए

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