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’यह कैसा दुश्मन, जिसके आगे दुनियां की महाशक्तियां भी हैं नतमस्तक ’

 हमें डर है तो उससे, जो है भी और नहीं भी। जो किसी को दिखाई भी नहीं दे और मार भी दे। यह कैसा दुश्मन है, जो नज़र भी नहीं आए और हमला करें तो भी जानलेवा। आज विश्व का हर इंसान डरा - डरा सा नज़र आ रहा है। पूरी दुनिया की महाशक्ति उससे घबराने लगी है। सोचो, अगर कोई ऐसा जीव होता, जो दिखाई दे तो एक पल में ही उसका खात्मा किया का सकता था, लेकिन जिसने पूरी दुनिया को अपने कदमों में झुका दिया, उस अदृश्य दुश्मन को मिटाने और उससे बचने के लिए पूरी दुनिया ने एड़ी से चोटी तक का जोर लगा लिया, लेकिन उससे बचाव बमुश्किल नज़र आ रहा है। अगर मुमकिन होता,बचाव संभव होता कोई रक्षा उपकरण होता, तो दुनिया का हर इंसान उस उपकरण को खरीद लेता, लेकिन अब तो उससे बचाव करते हुए भी मन में संशय बना रहता है कि क्या हम बचाव कर पायेंगे या नहीं।

दुनिया के दर्जनों देशों ने 21 वीं सदी के इस दौर में ऐसे अकल्पनीय उपकरण बना लिए 
हैं, जो हैरान कर देने वाले हैं, लेकिन एक अदृश्य वायरस के आगे दुनिया की वे सभी महाशक्तियां  भी बेबस सी नजर आ रही हैं। क्या वास्तव में इंसान ने ऐसी तरक्की कर ली है, कि पलक झपकते ही उनके पास हर मुश्किल का उपाय हो। आज के परिपेक्ष्य में इस सवाल का जवाब नहीं में होगा। क्यों होगा। यह इसलिए होगा कि कि 21 वीं सदी के इस दौर में विश्व के महाशक्ति माने जाने वाले देश भी इस अदृश्य वायरस की शक्ति के सामने घुटने टेकते नज़र आ रहे हैं,

सोचों अगर इस वायरस के स्थान पर कोई अन्य जीव होता तो शायद दुनिया उसे पल भर में ही संपूर्ण समाप्त कर देती। जब पूरी दुनिया के शासन,प्रशासन और बड़े - बड़े वैज्ञानिकों ने इस वायरस से केवल बचाव ही उपाय बताया है, तब आम आदमी से लेकर खास आदमी के मन में यह ख्याल अवश्य आता होगा कि जिस दुनिया के वैज्ञानिकों ने हर समस्या का हल खोजा,लेकिन वे इस वायरस के आगे 21 वीं सदी के दौर में  भी बेबस हो गए, जहां हर समस्या का समाधान नज़र आता है। जब चारों और निराशा ही निराशा हो, ऐसे हालात में भी लोगों के मन में यह ख्याल आता है कि क्या कोई ऐसी शक्ति है ? जो परेशानी के ऐसे दौर में जिस दौर में कहीं भी कोई भी उपाय न हो ऐसे हालात में भी दुनिया के लोगों को आश्वस्त कर सकें कि हां मैं तुम्हें बचा सकता हूं। 

ऐसी कोई शक्ति या उपाय कहीं नज़र नहीं आ रहा, तब उनको एक ही उपाय बताया गया कि सेल्फ डिफेंस यानि घर पर रहो सुरक्षित रहो। अब यह कहावत भी सिद्ध हो रही है कि दुनिया गोल है। हर इंसान सब कुछ और बहुत कुछ पाने के लिए घर से बाहर बहुत दूर तक निकल गया,चलता गया- चलता गया। अब उसने क्या पाया यह सबके सामने है, क्योंकि वह घूम फिर कर वापस घर की ओर लौट आया। सारा जहां पाने के लिए जिस दर को छोड़ दिया, आज सभी के लिए वही सुरक्षा कवच बन गया। अर्थात न कहीं आना है और न कहीं जाना है,केवल घर पर रहना और जीना है। यह मैं नहीं कह रहा यह पूरी दुनिया की हुकुमतें कह रही है। स्टे होम,स्टे सेफ।

कुछ वर्षां पहले जहां से शुरू हुए, अब वहीं पर आकर ठहर गये। शायद इस अदृश्य वायरस ने पूरी दुनिया को बहुत कुछ
सिखा दिया है। यानि एक मारवाड़ी कहावत को भी आज चरितार्थ कर दिया कि ’घर बिना धर कोनी ’। एक अहम सवाल, जो हर इंसान के मन में उठता है कि दुनिया चाहे कितनी भी तरक्की कर ले प्रकृति के आगे बेबस होकर नत मस्तक होना ही पड़ता है। बहुत कुछ पाने के लिए जिस घर परिवार को छोड़ दिया, आखिर वहीं पर आकर उन्हें सहारा मिला।

अब हर इंसान के मन में केवल एक ही विचार उठता है और यही आखरी हल भी है कि जो होगा देखा जायेगा जिंदगी बिंदास होकर जियो। उसी का परिणाम है आज बड़े से बड़े कलाकार, औहदेदार ,राजनेता न जाने कौन - कौन और हक कोई घर पर रह कर एन्जॉय कर रहे 
हैं, केवल जीने के लिए। और यही करना पड़ेगा अगर जीना है तो।
 
                                                            एम. हुसैन डायर,
                                                पीपड़ सिटी, जोधपुर (राजस्थान)। 
                                                                          

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