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नवकीर्तिमान स्थापित करता इंडिय

नवकीर्तिमान स्थापित करता इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन

छत्तीसगढ़ के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज होने जा रहा "इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन" लंबे अर्से से सुषुप्त फार्मासिस्टों को जाग्रत करने का कार्य कर रही है।पूरे जोश व निर्भीकता से लबालब संगठन के सदस्य हर दफ़ा फार्मासिस्टों की आवाज बन बुलन्द करती आ रहीं हैं।मुझे यह बात कहने में तनिक भी संकोच नहीं हैं।कुछ दिवस पूर्व विश्व फार्मासिस्ट दिवस के अवसर पर पं.दीनदयाल उपाध्याय अंतर्राष्ट्रीय आडिटोरियम रायपुर के सभागार में हजारों फार्मासिस्ट उपस्थित हो पूरे उत्साह के साथ 'विश्व फार्मासिस्ट दिवस' मनाया।विविध विषयों को लेकर कार्यक्रम की अनेक श्रृंखला सुबह से शाम तक आयोजित की गई।जहाँ प्रदेशभर के फार्मासिस्ट शिरकत कर आनन्द उठाये।

विश्व फार्मासिस्ट दिवस मनाने की परंपरा सन 2009 को इस्ताम्बुल(तुर्की)से आरम्भ हुई थी।तब से पूरे विश्व मनाते आ रही हैं।उसी के तारतम्य में रायपुर,छत्तीसगढ़ में भी उक्त दिवस भव्य रूप में मनाया गया।जिसके मुख्य अतिथि राज्य के यशस्वी माननीय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी व विशिष्ट अतिथि स्वास्थ्य मंत्री माननीय टी.एस. सिंहदेव जी व सांसद द्वय माननीया फूलों देवी नेताम,माननीया छाया वर्मा जी रहीं।

संघ के द्वारा माननीय मुख्यमंत्री जी के समक्ष कुछ माँगे रखी गई जिसे मंच से हर संभव पूरा करने का आश्वासन दिया गया।
दवाइयों के लिए मुख्य औषधीय गुणों से युक्त पौधों का होना छत्तीसगढ़ का सौभाग्य है।यहाँ वनों का प्रतिशत – 43.92 है।भारत संघ में छत्तीसगढ़ वनावरण के आधार पर तीसरा स्थान पर है।पर दुर्भाग्य एक भी उसके लायक यहाँ उद्योग स्थापित नहीं हैं।जिसे माननीय मुख्यमंत्री जी ने पुरजोर समर्थन दिया।

इसके लिए इंडियन फार्मासिस्ट के प्रदेश अध्यक्ष डॉ विनोद कुमार वर्मा सचिव राहुल वर्मा व संयोजक वैभव शास्त्री तथा सभी पदाधिकारीयों का अथक प्रयासों से शंखनाद किया गया।जिसका दुदुम्भी नाद प्रदेश के हर व्यक्ति के कानों तक सुनाई दे रही हैं।फार्मासिस्टों व जनहित की बातों को समयानुरूप सरकार व शासन के समक्ष लाना एक प्रबल जिजीविषा रहीं हैं।प्रदेश को बने 21 साल होने को है इस तरह का अभूतपूर्व कार्यक्रम का श्रेय केवल आईपीए को जाता है ।यह इन सबकी मेहनत व गहरी सोच का परिणाम है।जिसका प्रसाद हर कोई को मिलने वाला है।

वास्तविकता के उद्देश्यों और घटनाओं में ऐसे गुण और संबंध होते हैं जिन्हें संवेदनाओं और धारणाओं (रंग, ध्वनियां, रूप, प्लेसमेंट और दृश्य स्थान में निकायों के आंदोलन) की सहायता से सीधे जाना जा सकता है, और ऐसे गुण और संबंध जिन्हें केवल अप्रत्यक्ष रूप से और सामान्यीकरण के माध्यम से जाना जा सकता है अर्थात सोच के माध्यम से। सोच वास्तविक उद्देश्य के प्रतिबिंब की मानसिक प्रक्रिया है, जो मानव संज्ञान के उच्चतम चरण का गठन करती है।
एक लेख में दिनेश चमोला जी लिखते हैं-

'इस दुर्लभ मनुष्य जीवन में किसी विशिष्ट क्षेत्र की उपलब्धियों के लक्ष्य छूने वाले व्यक्तित्व के लक्षण प्रारंभ से ही दिखाई देने लगते हैं। नेतृत्व के लक्षण प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में या तो नैसर्गिक रूप से उनकी चिंतन क्षमता में प्रवेश कर जाते हैं या फिर उनके कृतित्त्व से ही कुछ विलक्षण करने की प्रामाणिकता प्रतिबिंबित होती है। उदर से महान होकर इस धरती पर कोई अवतरित नहीं होता। यदि प्रभुकृपा से पूर्वजन्मों की जमा पूंजी लेकर कोई आता भी है तो उसे भी कर्म के उस वृहद तालेनुमा रहस्य को ज्ञान, जिज्ञासा अथवा उत्कंठा की चाबी से ही खोलकर अपने पौरुष, जिजीविषा अथवा श्रमशक्ति का परिचय देना होता है।

वस्तुतः यह संसार ही हमारी हर प्रकार की प्रशिक्षणशाला है। अपनी प्रतिभा, जिज्ञासा से जिस ज्ञान की दिशा में हम दृढ़ इच्छाशक्ति व सम्पूर्ण निष्ठा से अग्रसर होते हैं तो वह कर्म की पगडंडी निश्छल रूप में हमारे प्रारब्ध की रूपरेखा तय करने लगती है। जीवन की महानतम उपलब्धियों के शिखर तक जाने के हर मार्ग की शुरुआत भी इसी कर्मभूमि पर सुनिश्चित होती है।'

निश्चित ही अपनी महत्वाकांक्षाओं की उपयुक्त दिशा में उठा हुआ प्रत्येक कदम,प्रयास न केवल हममें आत्मविश्वास की रचना करता है बल्कि हमारी प्रबल महत्वाकांक्षाओं के गंतव्य को पाने की हमारी प्रबल उम्मीदवारी पर भी मोहर लगा देता है।

जॉन मारक्वेस ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘लीडरशिप : फाइंडिंग बैलेंस बिटवीन अम्बिसन्स एंड एक्सेप्टेंस’ में कहा है कि 'चाहे नेतृत्व हो या अन्य कोई विशेषज्ञता, उनकी अपनी सकारात्मक विशेषताएं अथवा नकारात्मक कमजोरियां हो सकती हैं, लेकिन असली नेतृत्व वह है जो दोनों में संतुलन बनाये रखते हुए जीवन के रथ को सफलता की दिशा की ओर अग्रसर करे।'

सही नेतृत्व व नेतृत्वकर्ता के साथ हाथों में हाथ मिलाकर चलना ही श्रेयस्कर है।और यही श्रेष्ठतम सिद्धान्त है। जन भावनाओं का पारखी होना तथा उसकी भावनाओं को मूर्त रूप देना ही एक श्रेष्ठ मानव धर्म है।जिसका एक उदाहरण इंडियन फार्मासिस्ट एसोसिएशन साबित हो रहा है।

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