*!!अहिंसा का प्रकाशपूंज!!*
(आचार्य श्री महाश्रमणजी के जन्मोत्सव, पट्टोत्सव और दीक्षा दिवस पर विशेष)
आलेख............ मोहन भन्साली
आज विश्व व्यापी भयाक्रांत का गांभीर्य माहौल है। चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई है। चित पुकार की आवाजें गूंज रही है। शांति की पुकार! कहीं विस्तारवाद की नियति में दब रही है, तो कहीं प्रलोभन की चकाचौंध में दब रही है, तो कहीं अपने आपको शक्तिशाली दृशाने के चक्रव्यूह में दबाई जा रही है तो कहीं अहंकार की होडा होड़ में दबाई जा रही है।
आज अपनी संप्रभुता की सुरक्षा से ज्यादा दूसरे की संप्रभुता पर चोट पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। चाहें कोई कितना ही शक्ति संपन्न हो। फिर भी लालच वश वह दूसरे की संपत्ति को येन-केन प्रकारेण हड़पना चाहते है। दुसरी ओर कोई किसी के आगे झुकना नहीं चाहता। सब कोई एक दूसरे को झुकाना चाहते हैं। सब कोई अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं। सामने वाले को अपने अधीन करना चाहते हैं। दूसरे के सहारे चलने वाला परजीवी भी झुठी शान की अभिलाषा में अपने ही खुबसूरत शहरों को खंडहर बनाता जा रहा हैं। आन बान और शान से जीवन व्यापन करने वाली स्वावलंबी जनता जनार्दन को शरणार्थी बनाने को उतारु है। दुखदाई परिणामों को देखने के बावजूद एक दूसरे के बहकावे में आज भी अहं की ज्वाला से ग्रसित एक दूसरे को युद्ध के लिए ललकार रहें हैं।
ऐसे अन्धकारपूर्ण वातावरण में एक ऐसे महान अध्यात्म योगीराज हैं जो कि *बीना रुके -बीना थकें* अपने जीवन के सातवें दशक में भी अपनी धवल सेना के साथ निःस्वार्थ भाव से पद यात्राओं के द्वारा देश-विदेश की धरा पर गांव गांव शहर शहर में मानवता के कल्याण में अहिंसा रथ को लेकर अध्यात्म की ज्योत को प्रज्ज्वलित कर रहें हैं।
नाटा कद, गौर वर्ण,न मोटा न दुबला! सबको सम्मोहित करता तेज चन्द्रमा सा चमकता, शीतलता प्रदान करने वाला आभामंडल। भविष्य निहारती, अमृत बरसाती, छोटी-छोटी टिमटिमाती प्यारी प्यारी आंखें। कोमल कोमल हथेलियों पर भाग्य को सहराती हुई हस्त रेखाएं। उष्णता का प्रतीक, शक्ति प्रदाता, कष्ट हर्ता, मखमली मुलायम चरण रज। लगता है सृष्टि ने स्वयं अपने हाथों से प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को सजाया और संवारा है।
रेगिस्तानी टिब्बों में सरदारशहर का दुगड़ कुलराज, झूमर का लाल, नेमा नन्दन के दीक्षा प्रदाता जौहरी सुमेरु ने बालक मोहन के प्रस्फुटित वैराग्य को पल्लवित किया। युगपुरुष, दूरदृष्टा, अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी ने बाल मुनि मुदित को शिक्षा और दीक्षा में निपुण कर विनयवान संत को "महाश्रमण" से अलंकृत किया। 21 सदीं के महान् दार्शनिक आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने महातपस्वी महाश्रमण को तेरापंथ धर्मसंघ के इग्यारहवें अनुशास्ता के रूप में गंगाशहर की तपोभूमि पर हजारों हज़ारों की जनमैदिंनी की उपस्थिति में "युवाचार्य मनोनीत" कर गुरुदेव श्री तुलसी के सोपान को साकार करते हुए जन-जन को उपकृत किया।
धीर गम्भीर पुरुषार्थी संत आचार्य श्री महाश्रमणजी ने भैक्षव शासन के दसवें अनुशास्ता श्री महाप्रज्ञ जी के वचनों का निर्वाहन करते हुए मेवाड़ मारवाड़ की यात्राएं कर बीदासर का चातुर्मास सानन्द संपन्न किया। वृद्ध सेवा केन्द्रों में पधारे और वहां विराजित रुग्ण व वयोवृद्ध साधु साध्वियों की सेवा सुश्रुषा का आंकलन किया। यही वजह है कि तेरापंथ धर्मसंघ में साधु साध्वियां वृद्धावस्था या रुग्णावस्था में सेवा की चिंताओं से मुक्त रहता है। क्योंकि सेवाभावी संत संतियों के द्वारा संघ में सेवा व्यवस्था अकल्पनीय है। भौतिकवाद की चकाचौंध और बदलते हुए वैज्ञानिक युग में लोग ऐसी निश्छल भाव से की जाने वाली सेवाओं को देखकर प्रेरणा लेते है। हमारा सौभाग्य है कि हमें कलियुग में भी त्रेतायुग जैसा कुशल नेतृत्वकर्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी जैसा अनुकम्पा धारी अधिदेवता मिला।
शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमणजी ने नैतिक जागरणा में अनार्य क्षेत्र व सुदूर प्रदेशों की लंबी-लंबी पदयात्राओं का चयन कर "नैतिकता का शक्तिपीठ" गंगाशहर की पावन तपोभूमि से फरवरी 2014 को प्रस्थान किया।
देश की राजधानी दिल्ली के लालकिले से अहिंसा यात्रा का आगाज किया। पूर्वांचल में उत्तरप्रदेश, बिहार और उत्तराखंड होते हुए अहिंसा यात्रा का पहला पड़ाव विदेशी धरा नेपाल की राजधानी काठमांडू में किया। जहां दिल को दहला देने वाला तीर्व गति का भूकंप आया। चारों ओर त्राहिमाम त्राहिमाम का माहौल बन गया। जान बचाने के लिए लोगों में काठमांडू छोड़ने की अफरातफरी मच गई। किन्तु आपने तटस्थ भाव से भिक्षु शासन की गौरव गाथा गाते हुए मंगल पाठ सुनाया और धार्मिक श्रद्धा और आस्था के प्रति जन-जन को आस्थावान बनाया।
ऊंची-नीची, आड़ी-तिरछी, उबड़-खाबड़ चट्टानों और लंबी-लंबी गुफाओं को, कल-कल बहती नदियों को, गहरे-गहरे घने जंगलों को पार करते हुए आपने सागर किनारे साधना की।अनवरत चरैवेति चरैवेति मंत्र को चरितार्थ करते हुए आपने अपनी विशाल धवल सेना के साथ पूर्वांचल, पश्चिमांचल, उत्तरांचल और दक्षिणांचल के भू-भाग में उत्तराखंड, हिमाचल, नेपाल, भूटान,बिहार, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ , तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब आदि देश विदेश के प्रान्तों में हजारों हज़ारों किलोमीटर की लंबी-लंबी पद यात्राओं के द्वारा मानव जाति में नैतिकता, सद्भावना और व्यसन मुक्ति के संस्कारों की अलख जगाई।
आपके सान्निध्य में डायमंड सीटी सुरत में 1100 वर्षीतप के पारणें का विश्व रिकॉर्ड किर्तिमान बना। आध्यात्मिक जगत में त्याग और तपस्या की साधनाओं में गतिमान सुरत चातुर्मास "सर्वश्रेष्ठ चातुर्मास" का इतिहास रच दिया। वर्तमान में आपका "अहिंसा रथ" गुजरात के कच्छ क्षेत्र में अहिंसा की ज्योति प्रज्ज्वलित करता हुआ आगे अहमदाबाद चातुर्मास के लिए बढ़ता जा रहा है। कच्छ में "स्वाई कच्छी पूजी महाराज" से गणराज का बहुमान किया गया।
आप गांव-गांव, शहर-शहर होते हुए आदिवासियों से झुग्गी झोपड़ियों में भी नैतिकता के संस्कारों का बीजारोपण करने का अथक पुरुषार्थ कर रहे हैं। उन्हें धर्म और अधर्म का मार्ग प्रशस्त किया। त्याग और भोग का भेद बताया। आदर्श जीवन जीने की कला सिखाई। इंसान को इंसान बनाने का प्रतिबोध दिया। मानवीय मूल्य परक शिक्षा प्रणाली का मर्मज्ञ सिखलाया। मानव जीवन का कर्तव्य बोध सिखलाया। क्षमा और मैत्री का अमूल्य पाठ पढ़ाया। संयमित जीवनशैली का पथदर्शन दिया। सेवा और समर्पण का मार्गदर्शन दिया। सत्य और अहिंसा शास्वत धर्म को उजागर किया।
आपके पावन पाथेय से प्रेरित होकर हजारों लाखों लोग व्यसन मुक्ति का संकल्प करके अपने उजड़ते हुए परिवारों को बचा रहें हैं और स्वयं के जीवनस्तर को उत्कृष्ट बनाने के लिए आपकी वीतराग वाणी से आत्मसन्नान करने का प्रयास कर रहें हैं। सौहार्द, समन्वय और सहिष्णुता के उपदेश से जन-जन का मन प्रफुल्लित हो रहा है। जाति, रंग, भेद मुक्त असांप्रदायिक विचारधाराएं और सत्य अहिंसा की असाधारण साधनाओं से प्रभावित प्रबुद्ध व बौद्धिक, राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी और पत्रकार आदि चिंतनशील वर्ग और हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पादरी, दिगंबर, मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, जैन और अजैन आदि सर्व धर्मावलंबी गुरुजन अपने-अपने मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरिजाघर अथवा आश्रम, उपासरा और स्थानक आदि धार्मिक स्थलों के पावन प्रांगण में श्रृद्धा भावना से अहिंसा यात्रा का आतिथ्य सत्कार कर रहे हैं। अनेकानेक धर्मावलंबी गुरुजन आपकी अद्वितीय करुणा और वात्सल्यता भरी संयम साधना से अभिभूत होकर आपको अविस्मरणीय अलंकरणों से सुशोभित कर गौरवान्वित की अनुभूति कर रहें हैं।
आप वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सामंजस्य स्थापित करने के लिए अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान की महत्ता पर प्रकाश डालते है।जहां अणुव्रत है वहां छल-कपट और स्वार्थ गौण हो जाता है। जहां अणुव्रत है वहां लोभ मोह और माया का आकर्षण कम हो जाता है। जहां अणुव्रत है वहां स्वावलंबन और स्वाभिमानी मानसिकता का उद्भव हो जाता है। जहां अणुव्रत है वहां कोई हिंसात्मक गतिविधियों को बढ़ावा नहीं मिलता। जहां अणुव्रत है वहां प्रामाणिकता है। अणुव्रत साधना का प्रायोगिक स्वरूप है प्रेक्षाध्यान। प्रेक्षाध्यान से आसन प्राणायाम और प्राणवान योग-साधना का संचार होता है। जिससे भावनात्मक और विधायक चिंतन प्रस्फुटित होता है। संयमित जीवनशैली का आकर्षण बढ़ता है। जिसके फलस्वरूप कषाय रुपी प्रवृतियों पर विराम लग जाता है। जिससे तन और मन दोनों को ही स्वस्थ होने में बल मिलता है।
स्वस्थ समाज निर्माण और मानवता के उत्थान में अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान की साधना के लिए आप अनवरत प्रेरणा दें रहें हैं। अशांत विश्व की ज्वलंत समस्याओं के स्टीक समाधान में भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित अनेकांत दर्शन का बोधपाठ देते हैं। अपेक्षा है कि विनाशकारी परमाणुओं की शक्ति से ज्यादा अणुव्रत की आचार संहिता में निहित शक्ति को पहचानें। सर्व व्यापी खुशीहाली के आशादीप अणुव्रत को पहचानें। अणुव्रत के सिद्धांत सबको खुशीहाली से जीने का आलंबन देता है। अणुव्रत सत्य और अहिंसा का प्रकाशपूंज है।
आत्माभिमुख, करुणानिधि, महातपस्वी, योगीराज, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी विश्व स्तरीय पुनः शांति स्थापित करने के उद्देश्य से सव् कल्याण के साथ साथ पर कल्याण के लिए अध्यात्म की मंगल कामनाओं में अणुव्रत, सद्भावना, सहनशील और श्रमशीलता के पैगाम को विश्व के कोने-कोने में पहुंचाने में गतिशील है। ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीत पुकार के भयाक्रांत माहौल से मानव जाति को उभारा जाए और आधुनिक तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ भावी पीढ़ी को संस्कारवान बनाया जाए। विकासोन्मुख युवाओं को खुले आसमां में उड़ान भरने के लिए युगानुकुल सर्वांगीण विकास का खुशनुमा मंच प्रदान किया जाए।
!!श्रीचरणों में सादर समर्पित!!
::आलेख रचनाकार::
मोहनलाल भन्साली "कलाकार"
गंगाशहर, बीकानेर, राजस्थान ।
दिनांक ::05.05.2025
मो.::7734968551